शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

My Delhi Manifesto- क्या चाहती है दिल्ली !!!














" दिल्ली – सपनों का शहर ... खुशियों का शहर ... उम्मीदों का शहर ... आशाओं का शहर। कुछ यही सपने लिए जाने कितने लोग दिल्ली आते हैं ...और जाने कितने यहां रहते हैं। "

बात कॉलेज के दिनों की है ... जब ये चंद लाइनें अपनी एक डॉक्यूमेंट्री के लिए लिखी थी।

सपने अब भी वैसे ही हैं, खुशियां अभी भी उतनी ही प्यारी हैं, उम्मीदें बढ़ती जा रही हैं... आशाएं अब भी हैं... और इन सब के बीच अपनी दिल्ली भी कितनी बदल चुकी है। दिल्ली की जरुरतें कितनी बदल चुकी हैं... दिल्ली की आबादी कितनी बढ़ चुकी है। लेकिन क्या बढ़ती आबादी, फैलती दिल्ली और बदलती दिल्ली ... जरुरतों और विकास के बीच किसी भी तरह का सामंजस्य हम स्थापित कर पाए हैं, बड़ा सवाल ये है।
सवाल किसी सरकार या पार्टी विशेष का नहीं है।
सवाल दिल्ली का है...दिल्ली की आबादी का है...दिल्ली की जरुरतों का है...दिल्ली के विकास का है। सवाल दिल्ली के लोगों का है।
अपनी उम्र के हिसाब से दिल्ली के बदलाव का करीब-करीब तीन दशकों तक का दौर अभी तक मैने भी जिया है। मुद्दे कमोबेश वही रहे हैं ...बस वक्त वक्त पर लोगों की प्राथमिकता बदलती रहती है।

अपराध मुक्त और भयमुक्त दिल्ली
दिल्ली देश की राजधानी है। अगर इसी राजधानी के लोग खुद को सुरक्षित महसूस ना करें तो हालात वाकई चिंताजनक हैं। उस पर महिलाओं के खिलाफ लगातार बढ़ते अपराध...छीनाझपटी...छेड़छाड़ औऱ बलात्कार ... दिल्ली पुलिस केन्द्र के अधीन हो या राज्य के, दिल्लीवालों की मांग अपराध मुक्त और भयमुक्त दिल्ली की है जो उनका अधिकार है।
महंगाई – जी हां ... दिल्ली महंगाई से मुक्ति चाहती है।
देश के किसी भी हिस्से में कहीं भी कुछ भी होता है , उसका असर सीधा राजधानी दिल्ली के बाज़ारों ... घरों ... रसोईघरों पर पड़ता है। प्याज़ रसोईघरों से निकल कर चुनावी मुद्दा बन जाती है। और बात सिर्फ प्याज़ की नहीं है महंगाई की मार से आम आदमी सालों से बेहाल है । आखिर राजधानी में रहने की कीमत लोग चुकाएं ये कहां तक जायज़ है। जीना महंगा और लगातार महंगा होता जा रहा है।
बिजली-पानी का अधिकार 
 क्या निजीकरण हर समस्या का समाधान है। सवाल भी आपके सामने है और जवाब भी।  दिल्ली जैसे शहर को 24 घंटे बिजली- पानी की दरकार है। कहीं बढ़े बिल तो कहीं बिजली नहीं ... तो कहीं पानी की बूंद तक नहीं। मानो शहर का हर हिस्सा एक अलग जिंदगी जी रहा है।
विकास में सामंजस्य  
 राजधानी दिल्ली विकास चाहती है लेकिन विकास में सामंजस्य होना बहुत जरुरी है। आप एक फ्लाईओवर बनाते हैं लेकिन जहां वो फ्लाईओवर खत्म होता है वहां सड़क इतनी संकरी हो जाती है कि आपका फ्लाईओवर जाम का समाधान नहीं जाम का सबब बनता है।
शहर की बढ़ती आबादी के हिसाब से औऱ शहर के बढ़ते विस्तार के साथ साथ सुविधाओं का सामंजस्य बहुत जरुरी हो जाता है। 
विकास की समग्रता 
 विकास आबादी के हर हिस्से तक पहुंचे और शहर के हर कोने तक , ये भी सुनिश्चित करना होगा। एक बारिश में ही सरकारी एजेंसियों के दावों की पोल खुल जाती है। सड़कें तालाब में तब्दील हो जाती हैं, अंडरपास बसों को अपने आगोश में ले लेते हैं । जगह-जगह सड़कों पर गड्ढे ...

 हमें वर्ल्ड क्लास दिल्ली चाहिए थर्ड क्लास नहीं।

प्रदूषण से निवारण 
 प्रदूषण से छुटकारा पाने के तमाम उपाय जैसे नाकाफी साबित होते जा रहे हैं। सड़कों पर वाहनों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है, रात के वक्त राजधानी से गुजरने वाले भारी वाहन हवा को इतना ज़हरीला बना देते हैं कि दिन भर आपका दम घुटा सा रहता है।
बेहतर सार्वजनिक परिवहन सेवा 
शहर की आबादी के हिसाब से लोगों को अपने गंतव्य तक पहुंचाने के लिए शहर को एक इंटीग्रेडेट ट्रांसपोर्ट सिस्टम की दरकार है। जो शहर के हर हिस्से तक पहुंचना आसान बनाए ... सुरक्षित बनाए और सस्ता भी। जरुरत मेट्रो की भी है तो बसों की भी। उपयोगी ग्रामीण सेवा भी है, जरुरत सिर्फ समुचित संचालन की है।
बेहतर ट्रैफिक व्यवस्था और जाम से निजात 
दिल्ली को एक बेहतर ट्रैफिक सिस्टम की जरुरत है जो शहर में दौड़ने वाले ट्रैफिक पर काबू रखे साथ ही जगह-जगह लगने वाले जाम पर भी जो लोगों के वक्त के साथ साथ उनकी जेब पर भी भारी पड़ रहा है। अक्सर वीआईपी मूवमेंट भी लोगों के लिए परेशानी का सबब बन जाता है। ध्यान इस बात का रखा जाना चाहिए कि लोग ट्रैफिक नियमों का पालन करें बजाय इसके कि ज़ोर उनका चालान काटने पर दिया जाए। 
शहर की हरियाली बरकरार रखनी होगी
हमें ध्यान रखना होगा कि विकास पर्यावरण की कीमत पर ना हो । शहर का कंक्रीट शहर की हरियाली को ना निगल जाए। दिल्ली का फेफड़ा माना जाने वाला रिज इलाका धीरे धीरे उपेक्षा का शिकार हो रहा है, अतिक्रमण दिल्ली की हरियाली को निगल रहा है। जो पेड़ सालों से नहीं गिरे सरकारी विभागों की लापरवाही की भेंट ना चढ़ें। दिल्ली अपने बाशिंदों को स्वस्थ रखे, इसके लिए जरुरी है दिल्ली खुद तंदरुस्त रहे, हरी- भरी रहे। साथ ही लगातार गिर रहे जलस्तर पर भी नज़र रखी जाए और इसके लिए जो नियम कानून बनाए गए हैं उनका सख्ती से पालन किया जाए।
साफ-सुथरा शहर और गंदगी से छुटकारा
शहर को साफ सुथरा रखने की जिम्मेदारी जिन एजेंसियों की है वो अपना काम ठीक से करें, दिल्ली ये गारंटी मांगती है। शहर गंदा ना दिखे, दिल्ली इसकी गारंटी भी मांगती है। दिल्ली का एक हिस्सा वो भी है जहां आप कूड़े के पहाड़ देखते है, जहां आसपास के निवासी और वहां से गुजरने वाले एक अजीब सी बू के आदी हो चले हैं। डंपिंग ग्राउंड्स और लैंड-फिल साइट्स शहर का दाग ना बन जाएं, हमें शहर चाहिए... कूड़ाघर नहीं।
अवैध कॉलोनियों का नियमन
राजधानी में जिस वक्त जगह-जगह अवैध कॉलोनियां कुकुरमुत्ते की तरह उग आईं तब शायद अंदाज़ा नहीं रहा होगा कि आज वो दिल्ली की इतनी बड़ी आबादी का पता बन जाएंगी। पीने के लिए पानी नहीं, कई जगह बिजली नहीं, ना सड़कें ना सीवर, विकास की वास्तव में जरुरत इन कॉलोनियों को है जहां विकास चाहिए , परस्पर समन्वय के साथ विकास। सिर्फ दावों और वादों से काम नहीं चलेगा, काम कर के दिखाना होगा क्योंकि आपके चाहते और ना चाहते हुए भी अब ये हमारे शहर का ही हिस्सा है।
यमुना को बचाना होगा 
दिल्लीवाले अपनी धरोहर यमुना को लेकर साल में कुछ ही दिन जागते हैं लेकिन हज़ारों करोड़ों रुपए फूंकने के बाद भी यमुना की हालत बद से बदतर ही हुई है। यमुना में गिरने वाले नाले तमाम सरकारी दावों को मुंह चिढ़ा रहे हैं। इससे पहले कि ये शहर अपनी नदी को हमेशा के लिए खो दे ... जरुरी कदम उठाने होंगे, सरकार को भी और इस शहर को भी।
सीवरेज सिस्टम में सुधार
शहर में कई जगह अभी भी सीवरेज सिस्टम पहुंचा नहीं है कई जगह अंतिम सांसे ले रहा है... और इसका नतीज़ा लोग हर साल भुगतते हैं। बदलाव और सुधार ...जरुरत यहां भी है।
भ्रष्टाचार मुक्त दिल्ली
सरकार के लाख दावों के बावजूद राजधानी अब तक भ्रष्टाचार मुक्त नहीं हो पाई है। भ्रष्टाचार हमेशा से ही जनसाधारण का पसंदीदा दर्द और दर्दनिवारक मुद्दा रहा है (भ्रष्टाचार को कोस-कोसकर लोग शांत हो जाते हैं। भ्रष्टाचार से ना सिर्फ आम आदमी परेशान है बल्कि सरकारी खजाने को भी चपत लग रही है। दिल्ली सरकार के हर विभाग को भ्रष्टाचार मुक्त देखना हर दिल्लीवासी का सपना है।
औऱ अब सबसे जरुरी बात जोकि दिल्ली और दिल्ली के लोगों के लिए सबसे जरुरी है
चुनावी वादों की सच्चाई
जी हां ... चुनाव के वक्त नेता वादे तो कर जाते हैं लेकिन उन वादों की हकीकत क्या है ये अगले चुनाव आने पर ही पता चलता है जब जनता के सामने उन वादों पर हो रहे दावों की कलई खुलती है।

दिल्ली शिक्षा का अधिकार चाहती है
दिल्ली सुरक्षा का अधिकार चाहती है
दिल्ली सूचना का अधिकार चाहती है
दिल्ली ज्यादा कुछ नहीं चाहती है ... बस 
विकास का अधिकार चाहती है ... 
दिल्ली...
जीने का अधिकार चाहती है 
यही सब कुछ है जो अपनी गति से धीरे-धीरे हो गया होता तो शायद कुछ ऐसे नए मुद्दे आ गए होते जो वक्त के हिसाब से मुनासिब रहते... लेकिन मुद्दों का ये बैकलॉग सालों से है ... औऱ दिलवालों की ये दिल्ली इस बैकलॉग को कब तक बर्दाश्त कर पाती है , ये देखना होगा। ये दिल्ली अपने अधिकारों के लिए लड़ना भी बखूबी जानती है , इंतज़ार कीजिए ...नतीजा आप खुद देखेंगे ... फर्क आप खुद महसूस करेंगे। 

दिल्ली की हालत फिलहाल कैसी है ये आपके सामने है ... हमें ऐसी दिल्ली चाहिए जहां विकास है तो विरासत भी । गूगल से साभार ली गई ये तस्वीर शायद यही कुछ बयां करती है। 
CTSY-GOOGLE

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें