गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

My ATM diaries - 1

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लोग फिर से एक-दूसरे पर भरोसा करने लगे हैं, देख कर-जान कर-समझ कर अच्छा लगता है, बहुत अच्छा... और भरोसा भी इस हद तक कि एक-दूसरे से अपने एटीएम/डेबिट कार्ड का पिन नंबर तक शेयर करने लगे हैं। डेबिट कार्ड और एटीएम के इस्तेमाल के तमाम नियम-कायदे उसी लाइन को ताक रहे हैं, वहीं किसी कोने में सिमटे हुए। अब एटीएम इस्तेमाल करते हुए उस छोटे से कमरे में एक कैमरे के साथ आपके इर्द-गिर्द 10 लोग अमूमन होते हैं, जो ये सुनिश्चित करते हैं आप अपना एटीएम पिन सही भरें और रकम नियम के मुताबिक, ज़्यादा नहीं। बिग बॉस कैमरे से सब देख ही रहे होंगे, जो नहीं दिख रहा होगा वो यह है कि लोग बेधड़क एटीएम की लाइन  में लगे परिचितों-अपरिचितों को अपने डेबिट कार्ड और पिन नंबर सौंप रहे हैं। लोग पैसे निकालने में हंसते-मुस्कुराते एक दूसरे की मदद कर रहे हैं, सुख-दुख बांट रहे हैं, किस एटीएम में पैसा कब आता है, कितनी बार आता है... कहां जल्दी खत्म हो जाता है... ये तमाम जानकारियां आपको न गूगल पर मिलेंगी, न किसी ऐप पर। ये ज़िंदगी के खरे अनुभव हैं जो आपके ज़िंदगी की लाइन में लगकर ही मिलते हैं, एटीएम तो बस साधन है।

वैसे मजबूरी और जरूरत लोगों को आपस में भरोसा करना सिखा देती है। हर बुराई की तरह हर तरह की अच्छाईयां भी आपके भीतर ही होती हैं, हमेशा से रही हैं। आपको सिर्फ पहचानने की जरूरत होती है, न जाने किस मोड़ पर नारायण मिल जाए या फिर न जाने किस मोड़ पर एटीएम मिल जाए... ऐसा आदर्श एटीएम जहां कोई लाइन न हो, जहां भरपूर कैश हो . . . जहां 2000 रुपए के पिंकू नोट के अलावा 500 और 100 रुपए के करारे नोट भी मिलते हों, एकदम नए... जैसे छप रहे हैं धड़ाधड़ आपके लिए।

जरूरत के वक्त एक-दूसरे के काम आना ही इंसान की असली पहचान है, लेकिन ये विशेषता कलियुग की पहचान तो नहीं मानी जाती लेकिन लोगों ने इस युग को भी झुठला दिया है। ऐसे नितांत अजनबी लोग, जिन्हें पहले आप कभी मिले भी नहीं, कोई जान-पहचान तक नहीं... बस एक एटीएम की लाइन का साथ...ऐसा लगने लगता है जैसे आप उन लोगों को सालों से जानते हैं। आप उनके सुख-दुख, ज़िंदगी में शरीक होने लगते हैं। इसके अलावा धैर्य, संयम, साहस, समझदारी, वाक-चातुर्य, बोली की मिठास सब कुछ लौट आया है आपकी ज़िंदगी में इस लाइन के बहाने। बेशक इन सब मूल्यों का औचित्य अपनी जगह हैं और पैसों की उपयोगिता अलग, लेकिन आपकी प्राथमिकता क्या है... तय कर लीजिए उन तमाम लोगों और उन तमाम जरूरतों के बीच। अपने अनुभव शेयर करते रहिए... क्योंकि बांटने से जानकारी बढ़ती है, प्यार बढ़ता है, शायद पैसा भी और भरोसा भी। ज़िंदगी बदलने के लिए तो खैर एक लम्हा भी बहुत होता है, अब तो एक महीना हो चला है। इस लाइन में चलते-चलते हम वापिस कब इंसान हो चले हैं, हमें खुद ही पता नहीं। सामाजिक समरसता का ये दौर मुबारक हो !!!